धीरे-धीरे जमीन पर उतर रही है राष्ट्रीय शिक्षा नीति

अवधेश कुमार

उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद की 10वीं और 12वीं हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा से लेकर परिणाम तक की पूरी प्रक्रिया को अगर अनेक शिक्षाविद और विश्लेषक उदाहरण के रूप में पेश कर रहे हैं तो यह बिल्कुल स्वाभाविक है। उत्तर प्रदेश में कोई परीक्षा और परिणाम विवादित नहीं हो इसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। ऐसा हुआ तो साफ है कि प्रदेश में शिक्षा और परीक्षा के क्षेत्र में नए अध्याय की शुरुआत हुई है। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद की स्थापना का यह 100 वां वर्ष है ।सच कहा जाए तो परीक्षा और परिणाम दोनों के साथ नए इतिहास का निर्माण हुआ है। उत्तर प्रदेश बोर्ड के इतिहास में अब तक के सबसे कम समय में यह परिणाम घोषित हुआ है। ध्यान रखिए उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद एशिया का सबसे बड़ा शैक्षणिक बोर्ड है। इनमें परीक्षार्थियों की भारी संख्या को देखते हुए यह कहा जाने लगा था कि इतनी बड़ी संख्या से लेकर भौगोलिक रूप से पूरब से पश्चिम उत्तर से दक्षिण की दूरी के बीच आयोजित परीक्षाओं में कुछ न कुछ गड़बड़ी होगी ही। 10 वीं की परीक्षा में में कुल पंजीकृत छात्रों की संख्या 31 लाख 16 हजार 454 थी जिनमें से 28लाख 63 हजार 631 छात्र परीक्षा में बैठे। इसी तरह इंटरमीडिएट या 12 वीं में कुल पंजीकृत थे 27 लाख 68 हजार 180 जिनमें से 25 लाख 71 हजार 2 छात्र परीक्षा में बैठे ।इस तरह 54 लाख से ज्यादा छात्रों ने परीक्षा दिया, जिनमें से 46 लाख से थोड़ा ज्यादा उत्तीर्ण हुए।

इतनी बड़ी संख्या परीक्षार्थियों की तो दुनिया के अनेक देशों में नहीं है। उसमें भी उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कई मामलों में बदनाम था। कदाचार, नकल और काफी विलंब से परिणाम घोषित करना उसकी पहचान बन गई थी। मान लिया गया था कि चाहे इसकी जितनी आलोचना हो इसे पूरी तरह बदला ज्यादा बिल्कुल संभव नहीं है । इतनी बड़ी संख्या कि परीक्षार्थियों के उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन उनके प्रारूप में उनकी गणना और फिर अंततः अंतिम परिणाम निकालने में तो समय लगेगा। लेकिन हुआ क्या? बोर्ड की परीक्षा 16 फरवरी से 4 मार्च तक आयोजित की गई थी। इसके बाद मूल्यांकन- पुनर्मूल्यांकन 14 दिनों में पूरा हो गया और 25 अप्रैल को परिणाम जारी। इस तरह परीक्षा खत्म होने के 52 दिनों बाद ही परिणाम आ गया। परीक्षा पूरी तरह कदाचार मुक्त। यानी नकल की एक भी सूचना पूरे प्रदेश से कहीं नहीं आई। इसी तरह प्रश्न पत्र लीक होने की परंपरा भी खत्म हो गई। ऐसा कोई वर्ष नहीं था जब प्रश्न पत्रों के लीक का मामला सामने नहीं आता। हर बार किसी न किसी पत्र या कई पत्रों की पुनर्परीक्षाएं भी आयोजित करनी पड़ती थी। कई बार तो एक ही विषय की पुनर्परीक्षा कई बार करानी पड़ी क्योंकि बार-बार प्रश्न लीक होने की घटनाएं सामने आ गई। आपको उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद को जानने वाले बोलते मिल जाएंगे कि ऐसा हो गया पर अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि वाकई ऐसा हुआ ही है। फिर नहीं कह सकते की नकल नहीं होने या प्रश्न पत्र लिक नहीं होने का असर उत्तीर्ण होने वाली संख्या पर पड़ा है।

बिना नकल के संपन्न कड़ी परीक्षा के बावजूद अगर 10 वीं में 89.78 प्रतिशत और 12 वीं में 75.52% परीक्षार्थी सफल हुए हैं तो इससे सामान्य नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न है कि यह चमत्कार हुआ कैसे? वास्तव में योगी आदित्यनाथ सरकार के कार्यकाल में शिक्षा का सुधार एक महत्वपूर्ण कदम माना जाएगा। वैसे तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति धीरे-धीरे जमीन पर उतर रही है, किंतु उप्र की परीक्षाओं का अतीत शर्मनाक रहा है। सरकार ने इस बात के लिए कमर कस लिया था कि परीक्षा को इतना फूलप्रूफ बनाएंगे कि दूसरी सरकारें भी हमारी नकल करने को विवश हो जाए। पहले लंबा विचार मंथन हुआ और फिर उनमें से आए महत्वपूर्ण सुझावों- विचारों को कार्य रूप में परिणत करना आरंभ हुआ। वास्तव में उप्र बोर्ड ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट दोनों परीक्षाओं में ऐसे कई नए और महत्वपूर्ण प्रयोग किए जिनका असर दिखा। शायद कईयों को इसका महत्व समझ में तब आएगा जब यह पता चले कि बोर्ड के इतिहास में पहली बार है जब परिणाम रिकॉर्ड समय में जारी किया गया। दूसरे, प्रश्न पत्र लिक नहीं हुआ यह तो महत्वपूर्ण है ही, किसी भी दिन गलत प्रश्न पत्र नहीं खोले गए यह भी सामान्य परिवर्तन नहीं है। जब पेपर लीक नहीं हो या एक विषय की जगह दूसरे विषय का प्रश्न पत्र न खुल जाए तो पुनर्परीक्षा कराने की आवश्यकता ही नहीं हो सकती । इसी का परिणाम था कि पुनर्परीक्षा नहीं करानी पड़ी। सारी चीजें एक दूसरे से जुड़ी हुई है। अगर प्रश्नपत्र लीक हो जाते या परीक्षा वाले विषय की जगह दूसरे दिन वाले विषय के प्रश्नपत्र खुल जाते तो पुनर्परीक्षा करानी पड़ती और रिकॉर्ड समय में परिणाम निकालना संभव नहीं होता। यह यूं ही नहीं हुआ। पूरी व्यवस्था की नए सिरे से समीक्षा और आवश्यक परिवर्तन के साहसिक निर्णय से ही संभव हुआ है। इनके लिए सबसे पहली आवश्यकता प्रश्न पत्रों को सुरक्षित रखने की होती है। जैसी सूचना है पहली बार उच्चस्तरीय सुरक्षा मानकों के अनुसार 4 लेयर में टैंपर एवीडेंट लिफाफे में पैकेजिंग की गई थी। इस कारण कोई भी प्रश्न पत्र लीक होकर वायरल नहीं हुआ। दूसरे, परीक्षा केंद्रों पर प्रश्न पत्रों को सुरक्षित रखने के लिए प्रधानाचार्य के कक्ष से अलग एक कक्ष में स्ट्रांग रूम की व्यवस्था की गई जिसे हर तरह से सुरक्षित किया गया था। इन सबसे भी आगे उत्तर पुस्तिकाओं में किसी प्रकार परीक्षा के बाद परिवर्तन नहीं हो, वो सुरक्षित रहें इसके लिए पहली बार क्यूआर कोड

का प्रयोग हुआ और माध्यमिक शिक्षा परिषद का लोगो लगाया गया। इससे उत्तर पुस्तिकाओं की शुचिता सुनिश्चित और पुनःस्थापित हुई। सभी जनपदों में सिलाईयुक्त उत्तर पुस्तिकाएं प्रेषित की गई। स्वभाविक ही इतने कदम से उत्तर पुस्तिकाओं में किसी भी प्रकार के हेरफेर या परिवर्तन की संभावना खत्म करने की कोशिश हुई और अभी तक की सूचना में इसके अपेक्षित परिणाम आए हैं।

वास्तव में किसी भी व्यवस्था में केवल ऊपरी आदेश या सख्ती से अपेक्षित सकारात्मक परिवर्तन नहीं हो सकता। उसके लिए उसकी पूरी संरचना, प्रकृति और तौर-तरीकों में आंतरिक स्तर पर परिवर्तन करना पड़ता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं अभिरुचि ली और शिक्षा मंत्री के अलावा उच्चाधिकारियों के साथ संबंध में संवाद बनाए रखा। बार-बार यह संदेश दिया गया कि सरकार परीक्षाओं को शत प्रतिशत पवित्र और दोषरहित बनाने के प्रति पूरी तरह संकल्पित है और जो इस रास्ते की बाधा बनेगा उसे परिणाम भुगतना पड़ेगा। संदेश दिया गया कि अगर परीक्षा में कोई भी गड़बड़ी हुई तो उसके लिए जिम्मेवारी तय करके सजा दी जाएगी । जैसा हम सब जानते हैं उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने अपने लिए तीन सोपान तय किए थे। गुणवत्तापरक शिक्षा, परीक्षा शत-प्रतिशत नकल विहीन तथा मूल्यांकन शुचितापूर्ण। जब माध्यमिक शिक्षा परिषद ने अपने आंतरिक व्यवस्था में सुधार आरंभ किए तो शैक्षणिक और राजनीतिक क्षेत्रों से उसका विरोध भी हुआ। उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार कोई भी कदम उठाए तो उसे राजनीतिक विचारधारा के आईने में हमेशा आलोचना और हमले झेलने पड़ते हैं। खासकर जब नकल करने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी एनएसए लगाने तथा परीक्षा निरीक्षकों पर भी कानूनी कार्रवाई का की घोषणा हुई तो पूरे देश में इसका विरोध हुआ। पहली दृष्टि में यह बात गले नहीं उतर रही थी कि अगर कोई छात्र नकल कर रहा है तो उस पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून क्यों लागना चाहिए? उसी तरह अगर परीक्षा निरीक्षक की गलती नहीं है और किसी ने उसकी नजर बचाकर नकल कर लिया तो उसके लिए निरीक्षक क्यों जेल जाए और सजा भुगते ।

इन सबके परिणाम हमारे सामने हैं। यह संभव नहीं कि मनुष्य कोई काम करे और उसमें छोटी मोटी भूलें न हो। किंतु उसे न्यूनतम बिंदु पर लाया जा सकता है। यह साबित हो गया कि अगर राजनीतिक नेतृत्व में इच्छाशक्ति हो तथा संकल्पबद्धता के साथ काम किया जाए तो छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों के व्यवहार में परिवर्तन के साथ व्यापक सुधार संभव है। निश्चय ही अन्य राज्य उत्तर प्रदेश से सीख ले सकते हैं।

India Edge News Desk

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